बच्चों की उच्च शिक्षा (Higher Education) के बढ़ते खर्च से कैसे निपटें ?

 



बच्चे अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त करें, ये हर माता – पिता का सपना होता है। परन्तु जब दिनों-दिन बढ़ते हुए उच्च शिक्षा (Higher Education)  पर होने वाले खर्च की ओर देखते हैं तो सोचने को बाध्य हो जाते हैं कि कैसे इस दायित्व (Responsibility) को निभाया जाये। दरअसल जिस तेज़ी से ये खर्च बढ़ रहा है, उस तेज़ी से न तो हमारी कमाई (Income) बढ़ती है, और न ही हमारी जमा पूँजी (Savings)। और इसलिए बच्चा जैसे जैसे कक्षाओं में आगे बढ़ता जाता है, वैसे वैसे चिंता बढ़ती जाती है।

इस लक्ष्य को पाने के लिए हम निवेश तो करते जाते हैं, पर कई बार ऐसा भी हो जाता है कि अंतत: मिली रकम (Maturity Value/ Grown Fund Value) पर्याप्त नहीं होती है। कई बार, कुछ वर्षों पूर्व ये एहसास भी हो जाता है कि हमारे अनुमान और यथार्थ में काफी अंतर आ सकता है, परन्तु उस समय पर, न ही इतना समय होता है, और न ही इतना पैसा होता है कि इस अंतर को पाटा (Bridging the Gap) जा सके।

इस लेख / ब्लॉग (Blog) में हम इन्हीं तथ्यों पर विस्त्रत चर्चा करेंगे -

यह पूंजीकोष (Corpus) अन्य पूंजीकोषो से अलग क्यों है –

सर्वप्रथम ये समझना जरूरी है कि उच्च शिक्षा के लिए जरूरी पूंजीकोष (Corpus/ Fund) अन्य पूंजीकोषों  से थोड़ा अलग होता है, क्योंकि -

1.   उच्च शिक्षा के लिए जरूरी राशि में, ज्यादा लचीलापन (Flexibility) नहीं होता है यानि तय राशि से कम राशि स्वीकार करना मुश्किल होता है,

2.   इसकी मंहगाई की दर (Rate of Inflation in Edication Sector) सामान्य दर (Rate of General Inflation) से बहुत ज्यादा है, इसलिए लक्ष्य बड़ा होता है,

3.    शिक्षा के अलग अलग क्षेत्रों मे पैसे कि जरूरत मे बहुत अंतर होता है, इसलिए शुरुआती वर्षों में, सटीक जानकारी के अभाव में, जरूरी पूंजीकोष का निर्धारण थोड़ा मुश्किल हो जाता है। जैसे शुरुआत मे मालूम नहीं होता कि बच्चा क्षेत्र में जाएगा इंजीन्यरिंग, मेडिकल या अन्य कोई।

परन्तु फिर भी, हमें इसके लिए जरूरी पूंजीकोष (Required Corpus/ Fund) बनाना आवश्यक होता है क्योंकि बिना इसके उच्च शिक्षा का खर्च वहन करना मुश्किल होता है। इसलिए, इस से संबन्धित तथ्यों (Aspects) पर अगर स्पष्टता हो और अपने अपने विवेक का प्रयोग करें, तो ये निर्णय थोड़ा आसान हो सकता है।

वित्तीय लक्ष्य (Financial Goal) को कैसे प्राप्त करें –

सामान्यत:, किसी भी वित्तीय लक्ष्य (Financial Goal) को प्राप्त करने के लिए तीन बातों की स्पष्ट जानकारी होना आवश्यक होता है

1.   लक्ष्य प्राप्ति के लिए उपलब्ध समय (Time available for the goal)

2.   लक्ष्य के लिए आवश्यक राशि (Targeted Corpus/ Fund)

3.   लक्ष्य प्राप्ति के लिए जरूरी निवेश (Investment Required to achieve the goal)

अक्सर पहली जानकारी सभी के पास स्पष्ट रूप में होती है।

परन्तु दूसरी और तीसरी जानकारी एकदम स्पष्ट नहीं होती है, और इसलिए उसे या तो अंदाज़ से ले लिया जाता है या किसी की सलाह से अपना लिया जाता है। दोनों ही परिस्थितियों में लक्ष्य की पूर्ति होगी, इसकी कोई निश्चितता (Surety) नहीं होती है क्योंकि लक्ष्य की रकम की स्पष्टता, जब लक्ष्य सर पर आ जाता है, तभी मालूम होती है। और तब, निवेश में की गई गलती या कमी को सुधारा नहीं जा सकता है। इसलिए लक्ष्य की सही रकम मालूम होना और उस तक पहुँचने के लिए उपयुक्त निवेश करना, दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

जैसे, अगर आपका बच्चा अभी 10 वर्ष का है और आप उसके इंजीन्यरिंग की पढ़ाई का प्रावधान करना चाहते हैं। आप ने आज की फीस (2 लाख रुपये प्रति वर्ष यानि कि 4 वर्ष के पाठयक्रम के लिए, 8 लाख रुपये)  से अनुमान लगाया और एक अंदाज़ से 15 लाख रुपए का लक्ष्य निर्धारण कर लिया। परन्तु जब बच्चे की पढ़ाई का समय आया तो ये फीस आपके अनुमान से भी ज्यादा बढ़कर 20 लाख रु हो गई। इसके अतिरिक्त, कई और ऐसे खर्चे भी साथ मे आने लगे जो जिनका आपको कोई अंदाजा नहीं था परन्तु वे पढ़ाई के अभिन्न अंग हैं इसलिए आप उन पर खर्च करने के लिए बाध्य हैं। अब इस तरह के खर्चों के लिए अगर आपने कोई प्रावधान नहीं किया था तो आप मुश्किल में पड़ जाते हैं। दूसरा यह  भी हो सकता है, कि जो निवेश आपने किया था, वो 15 लाख रु तक पहुँच ही न पाये या पहुँच भी जाये, तो कुछ भाग टैक्स में चला जाये और आपके हाथ 15 लाख रु से कम की राशि आए। इस तरह से आप थोड़े वित्तीय संकट में आ जाते हैं।

इससे निपटने के लिए हमें चार चरणों (Steps) की प्रक्रिया (Process) अपनाना चाहिए –

चरण 1 (Step – 1)

लक्ष्य को उच्च शिक्षा के वर्षों के हिसाब से बाँट दें। जैसे अगर 4 वर्ष का पाठ्यक्रम है तो सारा पैसा पहले वर्ष मे ही नहीं लगेगा बल्कि हर वर्ष, चार वर्षों तक लगेगा। इसलिए एक अकेला लक्ष्य रखने की जगह चार छोटे छोटे लक्ष्य रखिए जिससे बाद वाले वर्षों के लिए, आपके निवेश को वृद्धि के लिए ज्यादा समय मिल जाएगा। दूसरे, आपकी गणना (Calculation) में पैनापन आ जाएगा। तीसरा, आप निवेश के विकल्पों (Options) को बेहतर तरीके से चुन सकेंगे।

चरण 2 (Step – 2)

लक्ष्य अंदाज़ से नहीं बल्कि गणना (Calculate) करके निर्धारित करें, मंहगाई की दर (Rate of Inflation) प्रासंगिक (Relevant) लें, जैसे कि सामान्य मंहगाई की दर (General Rate of Inflation) 5% – 6% है परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में ये 10% – 16% है। दूसरा, केवल फीस पर ही केन्द्रित न हों बल्कि पढ़ाई से संबन्धित अन्य खर्च जैसे अतिरिक्त ट्यूशन/ कोचिंग (Tuition/ Coaching), अतिरिक्त पाठ्यक्रम की गतिविधियां (Extra-Curricular Activities), हॉस्टल के खर्च (Hostel Expenses), किताबें/ लैपटाप (Books/ Laptop) इत्यादि को भी पढ़ाई का हिस्सा मानें और उन्हें अपने लक्ष्य मे समाहित (Include) करें।

अधिक जानकारी के लिए आप मेरा पिछला ब्लॉग (Blog) पढ़ सकते हैं –

7 Essential Elements to ensure the investments would be meeting your child's higher education need

https://manishkantverma.blogspot.com/2021/08/7-essential-elements-to-ensure.html

चरण 3 (Step – 3)

वित्तीय लक्ष्य (Financial Goal) में अंतिम क्षणों में आने वाले अनजान (Unknown) व अकल्पनीय (Unimaginable) कारक (Factors) को समाहित करें। जिससे सभी देनदारियों के भुगतान के बाद भी आपके लक्ष्य के लिए जरूरी की राशि आपके हाथ मे आ जाए। जैसे आयकर (Income Tax), पूंजी/ कैपिटल लाभ कर (Capital Gain Tax), विचलन क्षय (Loss  due to Volatility, ब्याज की दर का क्षय (Loss due to dropping of rate of Interest) इत्यादि।

चरण 4 (Step – 4)

लक्ष्य के लिए उपलब्ध समय (Time Available), आपकी जोखिम लेने की क्षमता (Risk-taking capacity) और आपकी निवेश करने की क्षमता (Investment capacity) के अनुसार निवेश का विकल्प (Investment Option) चुनें। जैसे कम समय होने पर इक्विटि संबन्धित (Equity Related) और अधिक समय होने पर ऋण संबन्धित (Debt Related) विकल्पों से बचें। एक ही विकल्प के भरोसे न रहें बल्कि अपने निवेश को कई विकल्पों में बाँट दें जिससे आपका जोखिम कम हो जाए, इत्यादि ।

अनिर्णय की स्थिति से कैसे निबटें –

कई बार, ये निर्णय भी दुविधाप्रद होता है कि किस क्षेत्र मे उच्च शिक्षा का लक्ष्य (Target) लिया जाये, विशेषकर जब बच्चे की रुचि का कोई अंदाज़ न लग पा रहा हो। ऐसी स्थिति मे, आपको दो चरणों में इस पूंजीकोष (Corpus/ Fund) का निर्माण करना चाहिए। पहले चरण में आप अपनी पसंद से उच्च शिक्षा का क्षेत्र चुनकर, उस के हिसाब से अपना निवेश प्रारम्भ कर दें, और दूसरे चरण में, बच्चे की रुचि के हिसाब से लक्ष्य में बदलाव कर दें और इस बाकी पूंजीकोष  निर्माण के लिए अलग से  निवेश प्रारम्भ करें । इससे आप का लक्ष्य आसान हो जाएगा, क्योंकि जितना समय आप बच्चे कि रुचि को समझने में लगाएंगे उतने समय तक में आपका ये पुराना निवेश भी बड़ा रूप ले चुका रहेगा और इससे लक्ष्य के सुधार के लिए ही निवेश करना पड़ेगा, बजाये इसके, कि लक्ष्य के लिए नए सिरे से निवेश प्रारम्भ करें।

पूंजीकोष (Corpus) कम पड़ जाने पर क्या करें –

सामान्यत; सबसे प्रचलित तरीका होता है दूसरे लक्ष्यों के लिए जोड़े पैसो मे से इसके भरपाई करें। परन्तु इस तरीके को अपनाने में आगे आने वाले सभी लक्ष्य प्रभावित हो जाते हैं। यहाँ तक कि, अंतिम लक्ष्य, रिटायरमेंट (Retirement) भी इसकी चपेट में आ सकता है। इसलिए इस तरह का कदम उठाना उचित नहीं होता है, बल्कि “उच्च शिक्षा ऋण” इसका बेहतर विकल्प हो सकता है। उच्च शिक्षा ऋण का विकल्प चुनने से एक तो छोटी छोटी किश्तों में अदायगी हो जाती है, पता नहीं चलता है। दूसरे, ब्याज के रूप मे अदा की गई रकम पर आय कर में छूट भी मिलती रहती है, जिससे ब्याज की प्रभावी दर (Effective Rate) कम हो जाती है, इसलिए ज्यादा मंहगा नहीं पड़ता है। और फिर, अगर  ये भी मुश्किल हो, तो अदायगी के लिए अतिरिक्त समय का भी प्रावधान होता है, कि जब बच्चा नौकरी करने लगे, तब इसको अदा करें। इस तरह आपके भविष्य के लक्ष्यों पर असर नहीं पड़ता है।

निष्कर्ष –

बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए पूंजीकोष (Corpus)  का निर्माण करना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है क्योकि जिस गति से शिक्षा मंहगी होती जा रही है, उस के लिए जरूरी पूंजीकोष (Corpus)  का आकार भी बढ़ता जा रहा है। और अगर समय रहते इस बात को नहीं पहचाना तो बच्चे को उसकी रुचि की शिक्षा दिलाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए पूंजीकोष (Corpus) का निर्धारण बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसे अंदाज़ से कदापि नहीं लेना चाहिए। इस क्षेत्र मे बहुत परिवर्तन आ चुके हैं, और आते जा रहे हैं, जिनमें से कई पहलू शायद उस समय ही मालूम चलें जब बच्चा पढाई चालू करने वाला होगा, इसलिए पूंजीकोष (Corpus) में इन पहलुओं गुंजाइश रखना भी जरूरी है। इस कोष के लिए निवेश भी सोच समझ कर करना जरूरी होता है क्योकि ये दायित्व (Liability), अधिकतर सबसे पहले आता है और इसलिए इसको पूरा करने में आपके बाकी के लक्ष्यों पर आंच न आये। और अगर अंतिम क्षणों मे कोई कमी उभर कर आए भी, तो आपका योजना बी (Plan B) तैयार होना चाहिए।

एक सोची-समझी योजना ही सफलता की कुंजी होती है। दुविधा की स्थिति में आप ई - मेल के माध्यम से मुझसे परामर्श ले सकते हैं  - manishverma.fa@gmail.com


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