रिटायर (Retire)/ सेवा निवृत होने पर पर्याप्त लगने वाली आय कुछ ही वर्षों में कम क्यों पड़ने लगती है, इससे कैसे बचें?

 


एक लम्बी  नौकरी के बाद हर माह वेतन पाने की हमारी एक आदत सी हो जाती है, और इसलिए सेवा निवृती (Retirement) के बाद भी हम कुछ इसी तरह के प्रबंध में संतुष्ट होते हैं। फिर चाहे वह राशि हमारे वेतन से बहुत कम ही क्यो न हो। इस तरह की अपेक्षा के कारण, हम हमारे पूंजीकोष (Corpus) का भी कुछ इस तरह से निवेश करते हैं, कि हर माह एक निश्चित राशि (Fixed Fund) हमारे बैंक खाते मे आती रहे। परिणामस्वरूप, एक निश्चित राशि तो बैंक खाते मे आती रहती है, परन्तु हमारा खर्च पाँव पसारता रहता है, और कुछ वर्षों बाद ये राशि कम पड़ने लगती है। 

दरअसल, हम इस बात को शायद नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि हमारे वेतन में हर वर्ष एक वेतन वृद्धि (Increment) होती रहती थी इसलिए मंहगाई का असर निष्क्रिय हो जाता था। परन्तु ये विशेषता इस निश्चित राशि में नहीं है, और इसलिए ये निश्चित राशि हमारे वेतन का पर्याय (Alternative) नहीं हो सकती है, जब तक कि इसमें मंहगाई को निष्क्रिय करने प्रावधान सम्मलित न किया जाए। इस प्रावधान की अनुपस्थिति में, शुरुआत में लगने वाली धन की पर्याप्तता, कुछ ही वर्षों में अपर्याप्तता में बदल जाती है और फिर धनोपार्जन (Earning) के विकल्प (Options) तलाशना पड़ते हैं। परन्तु उस समय ये इतना आसान नहीं होता है।

आइये, इसे एक उदाहरण से समझते हैं –

प्रकाश जी 2010 में सेवानिव्रत (Retire) हुए थे और उन्होने उनका सेवानिवृति का पूंजीकोष (Retirement Corpus) कुछ इस तरह से निवेश किया –

- पूंजीकोष = रु 1.50 करोड़

- पोस्ट ऑफिस / बैंक – वरिष्ठ नागरिक फ़िक्स्ड डिपोसिट (Senior Citizen Fixed Deposits – FD)/ वरिष्ठ नागरिकों से संबन्धित अन्य योजनाएँ  – 75 लाख – प्रति माह ब्याज करीब – रु. 50,000  

- पेंशन फ़ंड – 75 लाख, पेंशन प्रति माह = रु. 50,000

इस तरह से, उनके बैंक खाते में हर महीने जमा होने वाली राशि – TDS कटने के बाद करीब रु. 90,000

- परन्तु उनका महीने का खर्च मात्र रु. 40,000 ही था, इस तरह करीब रु. 50,000 हर माह बचता था।

- साल के अंत में कुछ पैसा आय कर में देना पड़ता था और कुछ संपत्ति कर में, बाकी पैसा घूमने फिरने पर खर्च करते थे।

परन्तु धीरे धीरे खर्च बढ़ने लगा और जब पोस्ट ऑफिस / बैंक की FDs व अन्य योजनाओं का नवीनीकरण कराया तो ब्याज की दर कम हो जाने से इनसे आने वाला पैसा रु. 44,000 रह गया और खर्च बढ़कर रु. 50,000 के ऊपर जा चुका था।  हालाकि पेंशन के रु 50,000 के कारण पैसे की कमी महसूस नहीं हुई परन्तु थोड़ा सचेत हो गए और घूमने फिरने में खर्च में थोड़ी कटौती करना चालू कर दी। परन्तु खर्च बढ़ने का क्रम जारी रहा और इसलिए कटौतियाँ बढ़ती गईं।

परन्तु पुनः 5 वर्ष के बाद जब नवीनीकरण आया तो ये रु. 44,000 घटकर रु. 40,000 ही रह गया और खर्च बढ़कर रु. 70,000 के ऊपर निकाल गया था। अब TDS, आय कर, संपत्ति कर, इत्यादि के बाद आय और खर्च क़रीब क़रीब बराबर हो चुके थे।

अब उन्हें समझने आने लगा था, कि

-          अगर कोई स्वास्थ्य संबन्धित जरूरत आएगी तो अपनी जमा पूंजी से पैसा निकालना पड़ेगा।

-          फलस्वरूप, उनकी जमा पूँजी का  क्षय (Erode) होने लगेगा

-          फिर उस राशि से मिलने वाला ब्याज और भी कम हो जाएगा

-          इसके अतिरिक्त जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा खर्च मे वृद्धि भी निश्चित है

-          और धीरे धीरे जीवन-यापन भी मुश्किल हो जायेगा

इस तरह मात्र 10 वर्षों में पर्याप्त से अधिक लगने वाली राशि अपर्याप्त हो गई।

इसे नीचे दिये ग्राफ से समझना और आसान होगा –


अब प्रकाश जी के पास तीन ही विकल्प ही रह जाते हैं –

1 धनोपार्जन की कोशिश – मुश्किल है, क्योकि 70 साल की आयु में, नौकरी भी मुश्किल और व्यापार भी  

2 आत्मसम्मान से समझौता करके आर्थिक मदद लें – ये भी मुश्किल है, क्योंकि सारी उम्र दूसरों को देते रहे हैं, अब मदद के लिए हाथ फैलाना ... बहुत मुश्किल होगा  

3 खर्चों मे कटौती – कुछ हद तक संभव है परन्तु एक सीमा के बाद ये भी बहुत मुश्किल है, क्योंकि जीवन यापन में कुछ तो खर्च होगा ही 

4 अंतिम विकल्प के रूप मे हम अपने मूलधन को भी उपभोग करना प्रारम्भ कर दें, क्योंकि और कोई विकल्प शेष नहीं बचा  

परन्तु इस विकल्प के चुनाव के बाद, ये समस्या दिनों-दिन गहराती जाती है ...

जैसा कि ग्राफ से स्पष्ट होता है। जब मूलधन को भी निकालना चालू हो जाता है तो ये समस्या और भी गंभीर होती जाती है, क्योंकि मूलधन के क्षय के कारण ब्याज कम होना चालू हो जाता है जिससे ज्यादा मूलधन निकालने लगते हैं और कुछ वर्षों में सम्पूर्ण मूलधन समाप्त हो जाता है। और अगर इस बीच कोई आर्थिक संकट आ गया जिसमे एक साथ ज्यादा पैसा निकालना पड़ा तो मूलधन और भी पहिले समाप्त हो सकता है। फिर केवल पेंशन का 50,000 रुपया रह जाएगा जो जरूरत से बहुत कम होगा।

इस तरह प्रकाश जी, जो सेवा निवृति के शुरुआती वर्षों मे अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए एकदम आश्वस्त थे, अब असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और बहुत परेशान हैं। क्योंकि उन्हें इस बात का बोध है कि अब रोज़मर्रा के खर्चों के अलावा स्वास्ठ पर भी खर्च बढ़ेगा और अगर कोई बड़ा खर्च आ गया तो उसे वहन करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

इस उदाहरण से एक महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है कि हमारी अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए आर्थिक समझ अत्यंत आवश्यक है, पैसा कितना भी हो, अगर समझदारी से निवेश नहीं किया तो आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। रु 1.50 करोड़ का पूंजी कोष, अगर आज के द्रष्टिकोण (6% की मंहगाई की दर लेने से) से देखें तो लगभग 3 करोड़ होता है जो कि एक सम्मानजनक कोष है। परन्तु फिर भी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

समस्या –

दरअसल यह एक आम समस्या है कि शुरुआत में जब पर्याप्त धन मिलता रहता है तो खर्च बड़े आराम से चलता रहता है। और इसलिए इस ओर ध्यान ही नहीं जाता है कि धीरे धीरे खर्च अपने पैर फैला रहा था परन्तु जब स्थिति हाथ से बाहर जाने की कगार पर आ जाती है, तभी झटका लगता है, और फिर, इससे उबरना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

इसलिए समय रहते इसका निदान करना आवश्यक होता है।

समस्या का कारण –

मंहगाई के प्रभाव को कम आंकना

पारम्परिक निवेश से हटकर ना सोचना

पूँजी कोष (Retirement Corpus) को कई निवेश के विकल्पों में वितरित ना करना

जोखिमों को ना समझ पाना

लक्ष्य, एक निश्चित राशि (Fixed Fund) को करना बजाय उसकी क्रय शक्ति (Purchasing Power of Rupee) के

आय कर / पूँजी लाभ कर (Capital Gain Tax) को, योजना बनाते समय अनदेखा कर देना

बदलते हुए आर्थिक परिवेश में - निवेश की समीक्षा न करना

अपने भविष्य के खर्चों को कम आंकना (Under Estimation) …. इत्यादि

समस्या का निदान –

इस समस्या के निदान के लिए इस तरह के सारे तथ्यों को समझना आवश्यक होता है जिससे कि एक विस्तृत योजना (Detailed Planning) बनाई जा सके। एक योजना बद्ध तरीके (Planned Way) से आने वाले खर्चों का अनुमान लगाया जाए और उन खर्चों को वहन करने के लिए पर्याप्त धन।

जब ये योजना सेवा निवृती (Retirement) से पहिले करते हैं तो धन की पर्याप्तता (Adequacy of Retirement Corpus) का आकलन भी हो जाता है, और फिर अगर थोड़ी बहुत कमी लगती भी है तो सेवा निवृती के तुरंत बाद से ही कुछ धनोपार्जन (Earning) की व्यवस्था भी की जा सकती है।

यहाँ हमारे पूँजी कोष (Retirement Corpus) का निवेश बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि उसके निवेश में रहते हुए होने वाली वृद्धि (Growth) ही उसकी आयु तय करती है। अगर निवेश की वृद्धि की दर मंहगाई के बराबर या उससे भी काम है तो हमारा पूँजी कोष जल्दी समाप्त हो सकता है, परन्तु अगर ये वृद्धि दर मंहगाई से ज्यादा है तो उसकी आयु, वृद्धि दर के हिसाब से ही बढ़ती जाती है। इसलिए पूँजी कोष (Retirement Corpus) का निवेश बहुत सोच समझकर करना चाहिए, जिससे हम अपनी आमदनी की क्रय शक्ति (Purchasing Power) को संरक्षित रख सकें।

सेवा निवृत के पूँजी कोष (Retirement Corpus) को फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (Fixed Deposit – FD) में निवेश करना, हमारे देश में बहुत लोक प्रिय है और इसलिए अधिकतर वरिष्ठ नागरिक, बिना ज्यादा विश्लेषण किए, अपने धन का एक बड़ा भाग इसमें निवेश कर देते हैं। परन्तु निवेश की प्रासंगिकता (Appropriateness) समझे बिना, निवेश कर देना, एक बड़ी समस्या को न्योता देना भी हो सकता है।

FD से संबन्धित निवेश के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप मेरा पिछला ब्लॉग पढ़ सकते हैं –

कैसे निर्णय लें - आपको ये निवेश, बैंक/ पोस्टऑफिस फिक्स्ड डिपॉजिट्स (F.Ds.) में करना चाहिए, कि नहीं ?  

https://manishkantverma.blogspot.com/2021/12/fds.html

इसके बाद भी आर्थिक परिवेश हमारे विपरीत जा सकता है इसलिए निवेश की नियमित समीक्षा करते रहना और यथोचित संशोधन करते रहना आवश्यक होता है, नहीं तो कुछ ही समय में हमारा आर्थिक संतुलन बिगड़ सकता है।

निष्कर्ष –

सेवा निवृति, जीवन का अंत नहीं बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत होती है इसलिए इन वर्षों को आनंद के साथ व्यतीत करने के लिए आर्थिक सुरक्षा आवश्यक होती है। एक नौकरी धारक उसका सारी नौकरी में पैसा बचाता रहता है कि सेवा निवृति के बाद, जीवन के अंतिम पड़ाव में, वह एक सुखी जीवन व्यतीत करेगा परन्तु अगर उस समय उसे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़े तो उम्र भर बचत करते रहना व्यर्थ सा हो जाता है। इसलिए इस पहलू को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि पैसे की कमी आदमी का मनोबल ही नहीं तोड़ती, उसके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुँचती है। इसलिए समय रहते, इसे समझना और यथोचित क़दम उठाना आवश्यक होता है।

दुविधा की स्थिति में आप ई - मेल के माध्यम से परामर्श ले सकते हैं  - manishverma.fa@gmail.com

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