एक मुश्त राशि होने पर, गृह निर्माण/ क्रय हेतु लिए गए ऋण (Home Loan) का पूर्व भुगतान करें या निवेश करें?


घर खरीदते/ बनवाते (House buying/ constructing) समय भले ही ये विचार मन में न हो कि इस घर के लिए लिया गया ऋण हम निर्धारित अवधि (Loan repayment tenor) के पूर्व ही अदा कर देंगे, परन्तु जब भी एक मुश्त (Lump Sum) पैसा जमा हो जाता है, ऋण का बोझ कम करने की इच्छा बलवती होने लगती है। इस समय यह आवश्यक होता है कि हम यह निर्णय कि,

1.       ऋण के खाते (Loan Account) में वो पैसा डालें, या

2.       उस रकम को किसी बेहतर विकल्प में निवेश करें

आर्थिक विश्लेषण (Financial Analysis) के आधार पर लें कि हमारे लिए इन में से कौन सा विकल्प (Option) फायदेमंद है।

हालाकि जब कारण विवशता (Compulsion) होता है, जैसे कि इस घर को बेचकर दूसरा खरीदना हो या इसका ऋण समाप्त करके कोई दूसरा बड़ा ऋण लेना हो, इत्यादि, तब तो किसी तरह के आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं होती है।

इस ब्लॉग (Blog) में हम विस्तृत चर्चा करेंगे कि फायदेमंद विकल्प के चुनाव के लिए, आर्थिक विश्लेषण (Financial Analysis) कैसे करना चाहिए।

सामान्यतः पूर्व भुगतान करने का कारण, उस ऋण पर लगने वाला ब्याज ही होता है क्योंकि अगर ऋण ब्याज रहित होता तो शायद इस सम्बन्ध में किसी आर्थिक विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। इसलिए सारे विश्लेषण का मूलभूत आधार ऋण पर लगने वाला ब्याज ही होता है। यहाँ यह समझना भी आवश्यक है कि सामान्यतः जो ब्याज हम अपनी किश्त (EMI) में देते हैं कई परिस्थितियों में उसका पूर्णतः प्रभाव हमारी जेब पर नहीं पड़ता है इसलिए, उसका केवल असरदार भाग ही हमारे लिए विचारणीय होता है। और यह विचारणीय भाग जिस ब्याज से निर्मित होता है उसे प्रभावी ब्याज दर (Effective Rate of Interest) कहते हैं।

प्रभावी ब्याज दर वह ब्याज दर होती है जो आय कर छूट (Income Tax Rebate) का फायदा उठाने के बाद हम अंततः अदा करते होते हैं अर्थात, यह वह ब्याज होता जो हम अपने आय कर में गृह ऋण (Home Loan) पर मिली छूट को घटाकर निकाला जाता है।

दूसरी ओर, सामान्य ब्याज, वह ब्याज होता है जो हमारी EMI में मूलधन के साथ जुड़ा हुआ दिखता है।, और अगर लचीली ब्याज दर का चुनाव किया है तो ये बैंक की गृह निर्माण ऋण की दरों में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होता रहता है सामान्यतः हम निर्णय लेते समय इस ब्याज पर तो ध्यान देते हैं, परन्तु प्रभावी ब्याज को उतना महत्त्व नहीं देते हैं। जबकि हमारी जेब पर असर डालने वाली राशि प्रभावी ब्याज से ही निर्धारित होती है।

जैसे कि अगर आप के गृह निर्माण के ऋण (Home Loan) की ब्याज दर 8% प्रति वर्ष है और आप 30% के आय कर ब्रैकेट (Income Tax Bracket) में हैं। अब अगर आपका सालाना ब्याज 1.50 लाख रु तक है, तो आपको ब्याज मे अदा की गई राशि के ऊपर 30% की आय कर में छूट मिल जाएगी। जिससे आपके जेब से गई राशि 1.50 लाख रु. न होकर, 1.05 लाख रु. (Rs. 1.50 L – 30% of Rs. 1.50 L) होगी, और इसलिए, आपके लिए प्रभावी ब्याज दर 8% प्रति वर्ष से घटकर 5.6% प्रति वर्ष (8% – 30% of 8%) रह जाती है। इस तरह से, भले ही ऐसा प्रतीत होता है कि आप 8% प्रति वर्ष की दर से ब्याज अदा कर रहे हैं परन्तु वास्तविकता में आप 5.6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज अदा कर रहे हैं। क्योंकि केवल 1.05 लाख रु. ही आपके जेब से जा रहा है।

परन्तु अगर आप का सालाना ब्याज 1.50 लाख रु. से भी अधिक आ रहा हो, तब आपके लिए यह प्रभावी दर 1.50 लाख रु. तक ही सीमित रहेगी और शेष ब्याज राशि पर सामान्य ब्याज दर ही लागू रह जाएगी। ऐसी स्थिति में आपको भारित औसत (Weighted Average) के सिद्धांत से प्रभावी ब्याज दर निकालनी होगी।

इस गणना में आपका आय कर ब्रैकेट (Income Tax Bracket) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे, अगर आप आय कर के किसी अन्य ब्रैकेट में या आय कर की सीमा के बाहर हैं तो आपके लिए ये प्रतिशत बादल जाएंगे और इसलिए आपको अपनी परिस्थिति के हिसाब से इसकी गणना करनी पड़ेगी। जैसे अगर आप के आय कर का ब्रैकेट 20% है तो प्रभावी ब्याज दर 6.4% होगी और अगर 5% है तो प्रभावी ब्याज दर 7.6% हो जाएगी।

यहां यह समझना भी आवश्यक है कि प्रभावी ब्याज दर स्थिर (Static) नहीं होती है बल्कि, गतिशील (Dynamic) होती है। यह समय के साथ साथ, कारकों के बदलने से बदल सकती है, जैसे कि आप की आज की आय कर की दर भी स्थाई नहीं है भविष्य में परिवर्तित हो सकती है जिससे यह प्रभावी दर पुनः बदल सकती है। इसलिए निर्णय लेते समय, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि सोच थोड़ी दूरगामी हो।

इसीलिये, हम जब भी आर्थिक विश्लेषण करते हैं, हम हमेशा सामान्य ब्याज दर की जगह, प्रभावी ब्याज की दर का तो प्रयोग करते ही हैं, साथ के साथ भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का भी पूर्वानुमान लगाते हैं।

अब ऊपर दिये प्रकरण का आर्थिक विश्लेषण करें तो –

प्रभावी ब्याज 5.6% प्रति वर्ष है, और अब आपके के पास दो विकल्प हैं,

विकल्प – 1      आप एक मुश्त राशि अपने ऋण खाते में जमा करते हैं, तो इस स्थिति में आप उस राशि  

का 5.6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज में बचत करेंगे।

विकल्प – 2      आप एक मुश्त राशि किसी अन्य विकल्प में निवेश करते हैं, जो आपके लिए हर वर्ष रिटर्न्स कमा कर देता रहता है

अब यह रिटर्न अगर 5. 6 % से अधिक है तो आप फायदे में हैं परन्तु अगर कम है, तो आप घाटे में हैं।

इस तरह से, अगर आप की क्षमता, अपने निवेश से, 5. 6 % से अधिक कमाने की है तो आप को गृह ऋण अदा करने की जगह उस राशि को निवेश कर देना चाहिए, परन्तु अगर आप इतना रिटर्न्स कमा पाने के प्रति आश्वस्त नहीं हैं तो आपको पैसा ऋण खाते में डालना चाहिए।

इस तरह से आप किस स्थिति में फ़ायदे में हैं यह आपकी व्यक्तिगत परिस्थिति (Personal Circumstances) पर निर्भर करता है और इसीलिए इस निर्णय को सामान्यीकृत (Generalized) नहीं किया जा सकता है। इसे किसी व्यापक सूत्र से बांधना उचित नहीं है।

कई बार, आर्थिक विश्लेषण में यह निष्कर्ष आने पर भी कि उन्हें पूर्व भुगतान फायदेमंद नहीं है, लोग केवल मानसिक बोझ को हल्का करने के लिए भी पूर्व भुगतान करना चाहते हैं। परन्तु इस स्थिति में, आप मानसिक बोझ भले ही हल्का कर रहे हों परन्तु आर्थिक बोझ बढ़ा रहे होते हैं। वस्तुतः मानसिक बोझ एक लम्बे समय तक एक बड़ी रकम ब्याज के रूप में देते रहने का ही होता है और इसलिए जब तक अपने मन को, तर्क-पूर्ण आश्वासन न दिया जाए कि भुगतान की समय-अवधि जरूर लंबी है पर आर्थिक बोझ उतना नहीं होगा जितना अभी प्रतीत हो रहा है, मानसिक बोझ हल्का नहीं हो सकता है। क्योंकि आर्थिक कारणों से आने वाला मानसिक बोझ आर्थिक सांत्वना से ही शांत हो सकता है। 

इसके लिए हमें यह समझना होगा कि अभी हम जो मासिक किश्त दे रहे हैं वह समय के साथ साथ उसकी वास्तविक कीमत खोता जा रहा है जैसे, प्रथम वर्ष में अगर मासिक किश्त 20,000 रु है तो 5 वर्ष बाद इसी 20,000 रु की क्रय शक्ति करीब 14,950 रु रह जायेगी, अगर क्रय शक्ति का क्षय 6% प्रति वर्ष है।  इसी तरह 10 वर्षों बाद क्रय शक्ति मात्र 11,170 रु रह जाएगी, जबकि हमारी आय बढ़ती जा रही है। इसलिए समय के साथ साथ मासिक किश्त का आर्थिक भार कम लगने लगता है। इसके अतिरिक्त शुरुआत में ब्याज का प्रभुत्व धीरे धीरे मूलधन के प्रभुत्व में भी परिवर्तित होता जाता है जिससे बाद वाले वर्षों मे किश्त जाने पर संतोष होता है क्योंकि किश्त का अधिकतर भाग मूलधन का ही होता है। इस तरह से आर्थिक बोझ समय के साथ-साथ हल्का होते जाने वाला है और इसलिए मानसिक बोझ तर्क-संगत नहीं है।

इस तरह की परिस्थिति में ध्यान रखना चाहिए कि मानसिक बोझ हल्का करने मे आप आर्थिक बोझ भारी न बना लें।

निष्कर्ष

घर के लिए लिया हुआ ऋण, एक मुश्त राशि (Lump Sum Fund) की उपलब्धता होने पर भी, भावनाओं मे बहकर या किसी सामान्य सलाह पर अदा नहीं करना चाहिए बल्कि एक विस्तृत आर्थिक विश्लेषण (Detailed Financial Analysis) के आधार पर करना चाहिए। क्योंकि इसका आर्थिक विश्लेषण हर व्यक्ति की व्यतिगत परिस्थितियों पर निर्भर करता है, इसलिए सामान्य सलाह (General Tips) के आधार पर लिया निर्णय गलत भी हो सकता है। आपका आय कर का ब्रैकेट, आपके सालाना ब्याज की राशि, आपकी अन्य नोवेशों से रिटर्न्स कमा सकने की क्षमता, आपकी मानसिक शांति की स्वीकार्य क्षमता, इत्यादि आपकी व्यक्तिगत परिस्थितियां हैं जिनका समाधान व्यक्तिगत स्तर पर ही संभव हो सकता है इसलिए इसका निर्णय आपकी अपनी गणना से होना चाहिए।

दुविधा कि स्थिति में आप किसी आर्थिक सलाहकार से परामर्श ले सकते हैं या मुझसे ई – मेल के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं – manishverma.fa@gmail.com

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