रिटायरमेंट फ़ंड के निर्माण लिए निवेश कब प्रारम्भ करना चाहिए ?
हर कोई यही कहता है कि रिटायरमेंट फ़ंड (Retirement Fund) की तैयारी जितनी जल्दी हो सके, शुरू कर देना चाहिए।
सैद्धांतिक (In-principle) रूप से यह एकदम सही है, परन्तु इसका दूसरा पहलू भी है कि यह कितना व्यावहारिक (Practical) है? सच्चाई तो यह है कि नौकरी प्रारम्भ करते समय या
नौकरी के शुरुआती वर्षों में रिटायरमेंट के बारे में सोचने वाले लोग बहुत कम ही मिलेंगे,
क्योंकि अधिकतर लोगों की नौकरी प्रारम्भ करने के बाद काफी समय तक प्राथमिकता (Priority)
अपने रिटायरमेंट का इंतजाम नहीं बल्कि अन्य लघु – अवधि (Short-term) लक्ष्य (Target) होते हैं, जैसे - अपने शौक पूरे करना, घूमना-घामना, घर गृहस्थी के सामान खरीदना, इत्यादि। समय के साथ साथ लक्ष्यों में परिवर्तन भी होता है और अगली प्राथमिकता
बच्चों के भविष्य पर जाने लगती है, जैसे - बच्चों की पढ़ाई, उनके विवाह इत्यादि। और इसलिए अधिकतर निवेश इन लक्ष्यों को ध्यान में
रखकर ही होते हैं परिणामस्वरूप, रिटायरमेंट फ़ंड (Retirement
Fund) की तैयारी, हमारी प्राथमिकताओं में बहुत
नीचे दबी रह जाती है।
हालाकि, जाने – अनजाने, कुछ निवेश रिटायरमेंट के लिए भी होते जाते हैं, पर इनमें से अधिकतर पारम्परिक ही होते हैं, जैसे - प्रोविडेंट फ़ंड (PF)/ ऐक्षिक प्रोविडेंट फ़ंड (VPF)/ पीपीएफ़ (PPF) / एनपीएस (NPS) इत्यादि, भले ही इनका प्राथमिक उद्देश्य आयकर (Income Tax) बचाना ही क्यों न रहा हो। आक्रामक निवेश (Aggressive Investments like Equity Shares, Mutual Funds etc.) काफी हद तक बच्चो के उत्तरदायित्व के लिए किये निवेशों तक ही सीमित रहते हैं, रिटायरमेंट के लिए आक्रामक निवेश थोड़े पिछली कतार में ही रहते हैं। काफी हद तक आर्थिक बाध्यता (Financial Limitations) भी इसका एक कारण होती है और इसीलिये शुरुआती समय में, जब बचत सीमित होती है, पहले आने वाले लक्ष्य को प्राथमिकता दिया जाना स्वाभाविक होता है।
ये सच है कि रिटायरमेंट फ़ंड की तैयारी जितने जल्दी शुरू करेंगे लक्ष्य उतना ही आसान हो जाता है और जितनी देर करेंगे उतना ही मुश्किल होता जाता है, परन्तु यह भी तो सच ही है कि इसको पहले प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक निवेश के लिए धन की पर्याप्तता होना भी तो होनी चाहिए? और फिर, दूसरा सच यह भी है कि हर किसी के लिए केवल रिटायरमेंट ही तो एक उत्तरदायित्व नहीं होता है जिसके साथ न्याय करना आवश्यक होता है, बल्कि उसके जीवन से जुड़े सारे अन्य उत्तरदायित्व भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। और इसलिए, जब तक अन्य सारे उत्तरदायित्व से संबन्धित निवेश का धन पूर्णता को प्राप्त नहीं कर लेते या पूर्णता का विश्वास नहीं दिला देते, तथा आर्थिक परिस्थिति अतिरिक्त निवेश की अनुमति नहीं देती, व्यवहारिक रूप से रिटायरमेंट फ़ंड का निवेश प्रारम्भ करना मुश्किल हो जाता है। और अगर करते भी हैं, तो हो सकता है की किसी अन्य उत्तरदायित्व से समझौता कर रहे हों, और इसीलिए रिटायरमेंट फण्ड का निर्माण थोड़ा सा पिछली कतार में चला जाना स्वाभाविक होता है।
अब अगर सैद्धांतिक से हटकर व्यावहारिक दृष्टि भी से
देखें,
तो 35 से 40 वर्ष की उम्र पहुँचते- पहुँचते वो स्थिति आ जाती है कि रिटायरमेंट फ़ंड
के लिए निवेश प्रारम्भ किया जा सकता है क्योंकि शुरुआती लघु – कालीन लक्ष्य भी पूरे हो चुके रहते हैं, बच्चों के
लिए आवश्यक निवेश भी गति पकड़ चुके होते हैं और सबसे महत्वपूर्ण धन की पर्याप्तता
भी होने लगती है। और इसलिए व्यावहारिक रूप से भी इस समय तक रिटायरमेंट फ़ंड का निर्माण
प्रारम्भ कर ही देना चाहिए।
हालाकि इस विलंब से लक्ष्य थोड़ा मुश्किल तो जरूर हो जाता है परन्तु इतना भी मुश्किल नहीं हो जाता है कि उसको हासिल करने के लिए किसी वित्तीय समझौते की आवश्यकता पड़े, क्योंकि 35 – 40 वर्ष की आयु के बाद भी फ़ंड बनाने के लिए 20-25 वर्ष का समय होता है जो कि पर्याप्त होता है, साथ के साथ वित्तीय स्थिति भी काफी सुधर चुकी होती है जिससे नए निवेश के लिए धन की पर्याप्तता भी होने लगती है। परन्तु अधिक विलंब होने से लक्ष्य पाना मुश्किल होता जाता है क्योंकि हर 5 वर्ष में आवश्यक निवेश का आकार 2 गुने से भी ज्यादा हो जाता है। जैसे अगर किसी रिटायरमेंट फ़ंड को प्राप्त करने के लिए 25 वर्ष की आयु में, जरूरी निवेश 10,000 रु प्रति माह है तो उसी फ़ंड को प्राप्त करने के लिए 30 वर्ष की आयु में 20,000 रु, 35 वर्ष की आयु में 40,000 रु और 40 वर्ष की आयु में 80,000 रु प्रति माह पहुँच जाता है। यह राशि विलंब के साथ-साथ बढ़ती जाती है, परन्तु अगर सूझ बूझ के साथ योजनाबद्ध तरीके से निवेश करें, तो 20-25 वर्ष भी एक सम्मानजनक रिटायरमेंट फ़ंड निर्मित करने के लिए, पर्याप्त होते हैं। इसलिए अगर आप 40 वर्ष की उम्र में भी पहुँच चुके हैं तो रिटायरमेंट फ़ंड को लेकर घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ये घबराहट ही गलतियों को जन्म देती है।
इसके अतिरिक्त, कुछ पारंपरिक निवेश, जैसे - मकान, भूमि, सोना इत्यादि भी 10-15 वर्षों के कैरियर में
हो जाते हैं जिन्हें हम किसी भी लक्ष्य के साथ जोड़ कर नहीं देखते हैं, उन्हें भी रिटायरमेंट फ़ंड के लिए आवश्यक निवेशों के साथ समायोजित किया जा
सकता है, जिससे नए निवेश की राशि कम हो जाती है और लक्ष्य
आसान हो जाता है।
और अगर यही काम एक सुलझी हुयी रणनीति बनाकर किया जाए, तो लक्ष्य पाना और भी आसान हो जाता है। इसलिए बजाए इसके कि रिटायरमेंट फ़ंड बनाने के लिए समय के अभाव को, निवेश में अनावश्यक जोखिम लेकर निष्क्रिय करें, रणनीति पर ध्यान दें, योजना-बद्ध निवेश पर ध्यान दें।क्योंकि इस स्थिति में अनावश्यक जोखिम से धन का क्षय भी हो सकता है, जो कि घातक हो सकता है, इसलिए छोटा रास्ता (Short-cut) अपनाकर, अपनी जोखिम लेने की सीमा को न लाँघे। निवेश प्रारम्भ करने में हुई देरी को जोखिम बढाकर संतुलित करने की जगह, निवेश के सही विकल्प के चयन से संतुलित करें।
वित्तीय समझ आर्थिक सुरक्षा के लिए अतिआवश्यक होती है, केवल एक बड़ा रिटायरमेंट फ़ंड बनाना ही पर्याप्त नहीं होता है, रिटायर होने के बाद भी उसे योजना बद्ध निवेश करना पड़ता है, अन्यथा बाद के वर्षों में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। इसे विस्तार मे समझने के लिए आप मेरा पिछला ब्लॉग पढ़ सकते हैं, उसका लिंक निम्नानुसार है –
रिटायर (Retire)/ सेवा निवृत होने पर पर्याप्त लगने वाली आय कुछ ही वर्षों में कम क्यों पड़ने लगती है, इससे कैसे बचें?
https://manishkantverma.blogspot.com/2022/03/retire.html
वित्तीय समझ में निवेश के लिए चुने विकल्पों का महत्वपूर्ण योगदान
होता है और इसलिए, रिटायरमेंट
फ़ंड बनाने के लिए निवेश बहुत सोच-समझकर करना चाहिए जिससे आप अपने लक्ष्य के अनुसार
फ़ंड प्राप्त कर सकें, और इसके लिए आपके रिटर्न्स का अनुमान सटीक होना आवश्यक है। आपके आपेक्षित
रिटर्न्स और वास्तविक रिटर्न्स का अंतर कम करने के लिए आप मेरा पिछला ब्लॉग पढ़ सकते
हैं, उसका लिंक निम्नानुसार है –
आपके निवेश के रिटर्न्स (Returns) आपके अनुमान (Anticipation) से कम क्यों आते है?
https://manishkantverma.blogspot.com/2022/02/returns-anticipation.html
रिटायरमेंट
के समीप पहुँचने पर अक्सर लोग सुरक्षित निवेश (जैसे बैंक या पोस्ट ऑफिस FDs) की ओर जाने लगते हैं
परन्तु ये निर्णय केवल सुरक्षा की दृष्टि से लेना चाहिए या अन्य पहलुओं पर भी विचार
करना चाहिए? मेरा पिछला ब्लॉग आपको इस तरह के निर्णय लेने में
सहायक होगा, उसका लिंक निम्नानुसार है –
कैसे निर्णय लें - आपको ये निवेश, बैंक/ पोस्टऑफिस फिक्स्ड डिपॉजिट्स (F.Ds.) में करना चाहिए, कि नहीं ?
https://manishkantverma.blogspot.com/2021/12/fds.html
निष्कर्ष
–
रिटायरमेंट फ़ंड के लिए निवेश कब करना चाहिए से ज़्यादा तर्कसंगत होता है कि कब आप उस स्थिति में होंगे कि आप इस लक्ष्य के लिए निवेश कर सकेंगे। हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति समान नहीं होती है और इसलिए इसे किसी नियम से बांधना उचित नहीं है और इसलिए, किसी व्यापक दिशा निर्देशों (General Guidelines) से भ्रमित होने की जगह अपनी सुविधा और सीमाओं को प्राथमिकता देना उचित होता है। अन्यथा, भविष्य सँवारने के चक्कर में हम अपने वर्तमान से समझौता करने लगते हैं। इस फण्ड प्रारम्भ करने का यही समय पूर्णतः व्यक्तिगत (Personal) होता है और इसलिए किसी का अनुसरण करने की जगह, अपना आर्थिक परिवेश (Financial environment) देखकर निर्णय लेना चाहिए। एक सुलझी हुई रणनीति और योजना बद्ध निवेश, न केवल लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होता है बल्कि मानसिक शांति भी देता है।
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